नई दिल्ली: सोयाबीन खरीफ की एक प्रमुख फसल है। इसकी खेती देश के विभिन्न राज्यों में की जाती है। कई रोगों, कीटों तथा अन्य विषम परिस्थितियों की वजह से सोयाबीन की उत्पादकता में कुछ क्षेत्रों में कमी देखने को मिल रही है। यदि सोयाबीन की उत्पादकता में कमी के कारणों का सूक्ष्मता से विश्लेषण करें तो हम पायेंगे कि वर्तमान में सोयाबीन की खेती विभिन्न प्रकार की विषम परिस्थितियों का सामना कर रही है। दिन-प्रतिदिन इसकी खेती से जुड़े व्यय में वृद्धि हो रही है। इससे कृषकों को आर्थिक दृष्टिकोण से ज्यादा लाभ नहीं प्राप्त हो रहा है। सोयाबीन की खेती से जुड़ी चुनौतियाँ तब और भी विकट हो जाती हैं जब इस फसल पर किसी कीट या रोग का हमला हो जाए। इसलिए जो किसान सोयाबीन की खेती कर रहे हैं, उन्हें अतिरिक्त रूप से जागरूक रहने की आवश्यकता है। सोयाबीन की खेती को जो कीट प्रमुख रूप से नुकसान पहुंचाते हैं, वो इस प्रकार हैं:
तना मक्खी: यह मक्खी पत्तों पर अंडे देती है और फसल को 20 से 30 प्रतिशत तक हानि पहुंचा सकती है। यह मक्खी तने की बाहरी परत पर पलती है और जड़ों तक को खा सकती है। इससे पौधे मर जाते हैं। इस मक्खी का सबसे ज़्यादा आक्रमण फूल और फली बनने की अवस्था में होता है।
इस मक्खी से बचाव के लिए गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें। सोयाबीन की बोनी मानसून के बाद करें। अत्याधिक नाईट्रोजन वाले उर्वरकों का उपयोग नहीं करें। मिट्टी में पोटाश की कमी होने पर इसकी पूर्ति के लिए पोटाश खाद का उपयोग ज़रूर करें। खरपतवार पर नियंत्रण करें। इसके अलावा रोग प्रतिरोधक किस्में जैसे कि जे.एस-335, पी.के.-262, एन.आर.सी.-12 और एम.ऐ.सी.एस.-124 को उगाएँ।

पत्ता मोडक: यह कीट परतों के अन्दर रहते है। लार्वा पहले पत्तियों को खाती है। संक्रमण अधिक होने पर दूर से देखने पर समूचा खेत जला हुआ सा प्रतीत होता है।
इस कीट से बचाव के लिए क्षतिग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें। गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें। रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें। बीज की बुआई के लिए उपयुक्त मात्रा में बीज लें। खरपतवार पर नियंत्रण करें। अगर इसके बाद भी कीट पर नियंत्रण न हो पाए तो रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग करें। आप आक्सीमीटन मिथाईल 25 प्रतिशत ई.सी. 500 मि.लि./हे की दर से 600-800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।
अलसी इल्ली: यह सोयाबीन का एक प्रमुख कीट है। इसका आक्रमण सबसे पहले जुलाई महीने में देखा जाता है। ये कीट जब वयस्क होते हैं तो पूरी पत्तियों को खा जाते हैं। साथ ही लार्वा एक जाल सा बुन लेता है जिससे पत्तियां आपस में चिपक जाती हैं।
इस कीट से बचाव के लिए क्षतिग्रस्त पौधे को उखाड़कर नष्ट कर दें। अत्याधिक नाईट्रोजन उर्वरकों का उपयोग नहीं करें। कीट का प्रकोप बढ़ने पर इन्डोसल्फान 35 ई.सी. का 1200 से 1500 मि.लि/हे की दर से छिड़काव करें। इसके जगह पर आप मिथाईल पैराथाइन 2 प्रतिशत डी.पी. 20 कि./हे की दर से भी उपयोग कर सकते हैं।