कृषि पिटारा

रबी फसलों को फंगस जनित रोगों से बचाने के लिए करें ये उपाय

नई दिल्ली: रबी फसलों की बुवाई का समय चल रहा है। कई फसलों के रोग बीज जनित होते हैं। ये रोगजनक बीज बोने के बाद अनुकूल परिस्थितियों में अपनी रोगजनक उग्रता बढ़ा देते हैं ओर फसलों में बीमारी उत्पन्न कर देते हैं। इससे बोई गई फसल को काफी नुकसान होता है।

बीमारी फैलाने वाले फंगस अक्सर रोगजनक समुदाय में रहते हैं, जो अनुकूल वातावरण मिलने के बाद रबी फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। रबी फसलों में गेहूं और जौ में झुलसा व कंडुआ रोग और चना में उकठा, बीज सड़न, तना सड़न व जड़ सड़न रोग जबकि मटर में झुलसा, पत्ती झुलसा, पत्ती धब्बा रोग प्रमुख हैं। आलू का अगेती और पछेती झुलसा, टमाटर का झुलसा, पौधा गलन रोग, मिर्च में झुलसा, पौधा गलन रोग, लहसुन और प्याज में झुलसा रोग, पौधा गलन रोग पत्तागोभी में पत्ती धब्बा रोग, बैंगन में अंकुर झुलसा रोग और गन्ने में लाल रोग, ये सब फंगस से फैलेने वाले रोग हैं। इससे फसलों को भारी नुकसान होता है।

फंगस जनित रोगों से से रबी फसलों को बचाने के लिए किसान कुछ उपायों को अपना सकते हैं। जैसे कि, स्वस्थ बीज का प्रयोग करें। बीज बोने से पहले उसे नमक के घोल में डुबो कर रखें। इससे हल्के और रोग ग्रसित बीज ऊपर आ जाते हैं। उन्हे छलनी से छान लिया जाता है। जो मोटे और स्वस्थ बीज होते हैं वो नीचे बैठे रह जाते हैं जिन्हे बुवाई के उपयोग में लाया जाता है।

रबी फसलों को फंगस जनित रोगों से बचाने के लिए बीज का जैविक और रासायनिक उपचार करें। जैविक उपचार के लिए 10 ग्राम ट्राइकोड्रर्मा पाउडर को प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। रासायनिक उपचार के लिए कार्बोक्सिसन 37.5% + थाइरोम 37.5% 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज दर या कार्बोक्सिसन 17.5% + थाइरोम 17.5% 2 मि.ली.10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर बीजों का उपचार करें।

फंगस जनित रोगों से रबी फसलों को बचाने के लिए मृदा उपचार करें। इसके लिए 2 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर को 200 किलो सड़ी गोबर में मिलाकर जूट की बोरी से 10 से 12 दिनों तक ढंक दें। उस पर थोड़ा नमी बनाए रखें। इससे ट्राइकोडर्मा जीवाणु की संख्या बढ़ जाती है। फिर जिस खेत में रबी फसलों की बुवाई करनी है, उस खेत में छिड़काव कर मिट्टी में मिला दें। इन उपायों से रबी फसलों को फंगस संबंधी रोगों से बचाया जा सकता है और फसलों की उपज में वृद्धि की जा सकती है।

बीजों का उपचार करते समय कुछ प्रमुख सावधानियों को बरतना आवश्यक है, जैसे – बीज को उपचारित करते समय धुम्रपान न करें। अगर किसी व्यक्ति को चोट या अन्य आंतरिक चोट लगी हो तो उसे बीजों को उपचारित नहीं करना चाहिए। उपचारित बीजों को किसी भी गीली जगह पर न रखें। बीज को उपचारित करते समय हाथों पर दस्ताने और चेहरे पर मास्क का प्रयोग करें। उपचारित बीज जल्द से जल्द बो दें। दवा के खाली पैलेटों और डिब्बों का उचित विधि से निपटान करें। जब बीज उपचारित हो जाएँ तो अपने हाथ, पैर और मुंह को साबुन से अच्छी तरह धो लें।

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