नई दिल्ली: देश में लगातार बढ़ रहे रासायनिक खादों और कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी की सेहत पर गहरा असर पड़ रहा है। विशेषज्ञों और खाद उद्योग से जुड़े लोगों का मानना है कि इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार को खाद पर दी जा रही सब्सिडी के मौजूदा मॉडल में बदलाव करना चाहिए। फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FAI) के अध्यक्ष और दीपक फर्टिलाइजर्स के प्रमुख एस.सी. मेहता ने सरकार से आग्रह किया है कि खाद पर मिलने वाली सब्सिडी को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के जरिए सीधे किसानों के खाते में भेजा जाए।
मेहता का कहना है कि जब खाद सस्ती मिलती है, तो किसान उसका जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और मिट्टी की उर्वरता दोनों पर विपरीत असर पड़ता है। उन्होंने कहा, “अगर खाद पर सीधे किसानों को सब्सिडी दी जाए, तो इससे बाजार भी अधिक प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी हो जाएगा। साथ ही, उर्वरकों का संतुलित उपयोग बढ़ेगा।”
वर्तमान में कंपनियों को मिल रही है सब्सिडी
वर्तमान व्यवस्था के तहत, देशभर में करीब 2.6 लाख बिक्री केंद्रों पर PoS मशीनों के माध्यम से किसानों को सब्सिडी पर खाद दी जा रही है। किसान आधार कार्ड या किसान क्रेडिट कार्ड जैसी पहचान के आधार पर खाद खरीदते हैं और रिटेलर द्वारा बेची गई मात्रा के हिसाब से कंपनियों को सब्सिडी मिलती है।
यूरिया पर DBT लागू करने की वकालत
एस.सी. मेहता ने विशेष रूप से यूरिया की बिक्री पर DBT लागू करने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा कि मिट्टी की बिगड़ती हालत एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है, जिसे केवल उर्वरकों के संतुलित उपयोग से ही सुधारा जा सकता है। मेहता ने यह भी बताया कि मौजूदा समय में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स और अन्य वैकल्पिक खादों को उचित बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है, जिससे उर्वरकों का तो उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन फसल उत्पादन स्थिर बना हुआ है।
वैश्विक स्तर पर खाद की कीमतें अस्थिर
मेहता ने खाद सब्सिडी की मौजूदा नीति को अल्पकालिक बताया और कहा कि भारत हर साल लगभग 60 मिलियन टन खाद का आयात करता है, जो देश की कुल खपत का एक-तिहाई है। वैश्विक राजनीतिक अस्थिरता के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजारों में खाद की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है, जिससे सरकार का सब्सिडी बजट लगातार बढ़ता जा रहा है।
किसानों पर पड़ेगा क्या असर?
डीबीटी मॉडल लागू होने की स्थिति में किसानों को खाद खरीदते समय पूरी राशि चुकानी होगी और सब्सिडी बाद में उनके बैंक खाते में ट्रांसफर की जाएगी। इससे पहले छोटी जोत वाले किसानों पर आर्थिक दबाव बढ़ सकता है। कई किसानों के पास तत्काल भुगतान की व्यवस्था नहीं होती, जिससे उन्हें असुविधा हो सकती है। हालांकि, सरकार की किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) जैसी योजनाएं इस अस्थायी दबाव को कम करने में मदद कर सकती हैं।
विरोध और सुझाव दोनों जारी
जहां एक तरफ उद्योग जगत और कुछ नीति विशेषज्ञ डीबीटी को जरूरी सुधार मानते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ किसानों और संगठनों ने इस व्यवस्था पर सवाल भी उठाए हैं। उनका कहना है कि जब तक कृषि वित्त व्यवस्था और भुगतान प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और तेज़ नहीं होती, तब तक डीबीटी किसानों के लिए अधिक परेशानी पैदा कर सकती है। सरकार के सामने अब दोहरी चुनौती है—एक तरफ मिट्टी की बिगड़ती गुणवत्ता को सुधारना, दूसरी ओर किसानों को राहत देना। आने वाले वर्षों में डीबीटी मॉडल को लेकर लिए गए फैसले भारतीय खेती की दिशा तय करेंगे।