कृषि पिटारा

गर्मी में भिंडी की खेती से होगी बंपर कमाई, जानें जरूरी टिप्स

नई दिल्ली। भिंडी एक ऐसी सब्जी है जो हर किसी की पसंदीदा होती है। गर्मियों में लोग इसे दाल-चावल से लेकर पराठों तक के साथ बड़े चाव से खाते हैं। भिंडी का उपयोग सिर्फ खाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह कई अन्य उद्योगों में भी काम आती है। जहां भिंडी के फलों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है, वहीं इसकी जड़ों और तनों का इस्तेमाल गुड़ और खांड को साफ करने में किया जाता है। इसके अलावा, इसके फलों और रेशेदार डंठलों का उपयोग कागज और कपड़ा उद्योग में भी किया जाता है। अगर आप भी गर्मी के मौसम में भिंडी की खेती करना चाहते हैं, तो आपको कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना होगा।

तापमान का रखें खास ध्यान

भिंडी गर्मी की फसल है और इसके लिए 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान जरूरी होता है, ताकि अंकुरण सही ढंग से हो सके। हालांकि, जब दिन का तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, तो भिंडी के फूल झड़ने लगते हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित हो सकता है। गर्मियों में भिंडी की फसल से लगभग 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है, जबकि बारिश के मौसम में यह उत्पादन 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकता है। अच्छी उपज के लिए खेत की तैयारी, मिट्टी की गुणवत्ता और निराई-गुड़ाई पर विशेष ध्यान देना जरूरी है।

कैसे करें खेत की तैयारी?

भिंडी की अच्छी फसल के लिए भुरभुरी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें जैविक खाद और पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मौजूद हों। खेत को तीन से चार बार जोतकर समतल कर लेना चाहिए। गर्मी के मौसम में सिंचाई की सुविधा के अनुसार खेत को उचित आकार की क्यारियों में बांटना बेहतर होता है। खेती शुरू करने से पहले 120-200 क्विंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर मिलाएं। साथ ही, 50 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस और 50 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। बुवाई के एक महीने बाद अतिरिक्त 50 किलो नाइट्रोजन मिलाने से फसल की बढ़त अच्छी होती है।

बुवाई के समय ध्यान देने योग्य बातें

गर्मियों में भिंडी की बुवाई करते समय कतारों के बीच 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 12-15 सेंटीमीटर की दूरी रखें। अगर बारिश के मौसम में खेती कर रहे हैं, तो कतारों के बीच 45-60 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 30-45 सेंटीमीटर की दूरी रखना उपयुक्त होगा। गर्मी के मौसम में 5-6 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए, जबकि बारिश में जरूरत पड़ने पर ही पानी दें। साथ ही, खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहें, ताकि फसल को भरपूर पोषण मिल सके और उत्पादन अधिक हो।

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