नई दिल्ली: भारत, जो कृषि प्रधान देश के रूप में अपनी अहमियत साबित कर रहा है, अब एक नए क्षेत्र में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहा है। यह क्षेत्र है – डेयरी उत्पादन। देश में दूध, दही, घी और मक्खन की मांग में इजाफा हो रहा है और इसमें सबसे अहम भूमिका निभा रही हैं मुर्रा भैंसें। भारत में सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस की नस्ल मुर्रा है, जिसे उत्तर भारत में प्रमुख रूप से पाला जाता रहा है। इन भैंसों की खास बात यह है कि ये औसतन प्रतिदिन 25 से 30 लीटर तक दूध देती हैं, जो इसे दूध उत्पादन के क्षेत्र में इन्हें एक खास महत्व दिलाता है।
मुर्रा भैंस का दूध उच्च मात्रा में वसा, प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर होता है, जिससे इसका सेवन करने वाले लोग आरोग्यमंद रहते हैं। इन भैंसों की उच्च मात्रा में दूध देने की वजह से, उन्हें पालने वाले किसान दिन के लाखों रुपये कमा सकते हैं। एक मुर्रा भैंस से प्रतिदिन लगभग 25 लीटर तक दूध मिलता है, जिससे वे अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं।
अगर आप मुर्रा भैंस के अलावा भी कुछ अन्य नस्लों की भैंसों का पालन करना चाहते हैं तो इसी दुग्ध उत्पादन क्षमता की कुछ और भैंसें भी मौजूद हैं। ये हैं – मेहसाना और पंढरपुरी भैंसें। ये भी अपनी उच्च दुग्ध उत्पादन क्षमता के लिए पहचानी जाती हैं। प्रमुख रूप से गुजरात और महाराष्ट्र में पाई जाने वाली इन भैंसों को पालने से एक पशुपालक प्रतिदिन करीब 1000 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक कमा सकता है, जो उसकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए काफी है। भैंसों के पालन में निरंतर तकनीकी सुधार किए जाने चाहिए, ताकि इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले पशुपालकों को और भी अधिक लाभ हो सके और वे अधिक से अधिक उत्पादन करके देश की खाद्य सुरक्षा में योगदान दे सकें।