कृषि पिटारा

अरबी की फसल को ये रोग पहुँचाते हैं नुकसान, समय रहते इनपर नियंत्रण है ज़रूरी

नई दिल्ली: अरबी एक सदाबाहर जड़ी-बूटी वाला पौधा है, जो उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसका पौधा 1 से 2 मीटर लंबा होता है। इस फसल के अच्छे विकास के लिए गर्मी का मौसम उपयुक्त होता है। अरबी की खेती कई प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन यह फसल रेतली दोमट या जैविक तत्वों से भरपूर मात्रा वाली मिट्टी में उगाने पर बढ़िया परिणाम देती है।

अरबी की फसल को कई प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होने का खतरा बना रहता है। पत्ता झुलस रोग उन्हीं में एक है। इस बीमारी का हमला मुख्य तौर पर बारिश के मौसम में रात का तापमान 20-22° सेल्सियस और दिन का तापमान 25-28° सेल्सियस होने पर होता है। इसके प्रकोप से अरबी के पत्तों पर पानी के गोल धब्बे बन जाते हैं, जो सूखने के बाद पीले और गहरे जामुनी रंग के हो जाते हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए डीथेन एम-45 की 400 से 500 ग्राम मात्रा को 100 से 150 लीटर पानी में मिलाकर 7 से 14 दिनों के अंतराल पर प्रति एकड़ में छिड़काव करने से साकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं।

अरबी की फसल पर एलोमाई या बोबोन वायरस का भी संक्रमण अक्सर देखा जाता है। यह बैसीलाइ वायरस द्वारा फैलने वाली एक बीमारी है। इसकी रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधक किस्मों की बुआई करनी चाहिये और क्षतिग्रतस्त पौधों को खेत से उखाड़कर बाहर फेंक देना चाहिए।

अरबी की फसल को नुकसान पहुंचाने वाला एक अन्य प्रमुख रोग है – दाशीन का चितकबरा। यह एक विषाणु वाली बीमारी है, जो चेपे के कारण फैलती हैं। इस बीमारी के लक्षण सर्दी के मौसम में देखने को मिलते हैं। इससे प्रभावित होने पर अरबी के पत्तों पर कई प्रकार के निशान बन जाते हैं। इससे बचाव के लिए अरबी की अलग-अलग किस्में उगानी चाहिए।

अरबी की फसल में गांठों के गलने की समस्या भी अक्सर देखी जाती है। इस बीमारी के मुख्य लक्षण पत्तों का छोटा रह जाना, शिखर से मुड़ जाना, पीला पड़ना और उनपर धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। इससे पौधे का विकास भी रुक जाता है। अरबी की फसल पर जैसे ही इस बीमारी का प्रकोप दिखे यथाशीघ्र ज़िनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम या एम 45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करना चाहिए। ऐसा करने से यथाशीघ्र इस बीमारी के प्रकोप में कमी देखने को मिलेगी।

Related posts

Leave a Comment