कृषि पिटारा

जूट की उन्नत किस्मों की बुआई से बढ़ जाता है मुनाफा

नई दिल्ली: जूट एक रेशेदार पौधा है जिसके रेशे से बोरी, दरी, टाट, रस्सियाँ, कागज और कपड़े इत्यादि बनाये जाते हैं। हमारे देश में जूट की खेती पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम, त्रिपुरा, मेघालय और उत्तर प्रदेश के कुछ तराई इलाकों में की जाती है। जूट की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु के साथ 24 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम उपयुक्त होता है। जूट की खेती के लिए समतल भूमि के अलावा दोमट तथा मटियार दोमट मिट्टी, जो पानी रोकने की पर्याप्त क्षमता रखती हो, सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है।

जूट की उन्नत किस्मों से किसानों को अधिक पैदावार प्राप्त करने की संभावना काफी बढ़ जाती है। इसकी दो प्रकार की किस्में होती हैं। पहली कैपसुलेरिस और दूसरी ओलीटोरियस। जूट की कैपसुलेरिस किस्म को सफेद जूट भी कहा जाता है। इसकी बुआई फरवरी से अप्रैल महीने में की जाती है।

जूट की कैपसुलेरिस किस्म के अंतर्गत जे०आर०सी०-321 एक उन्नत किस्म है, जो अच्छी पैदावार देती हैं। यह एक शीघ्र पकने वाली किस्म है। यह प्रजाति जल्दी वर्षा होने वाले क्षेत्रों तथा निचली भूमि के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। इसकी बुआई का सही समय फरवरी-मार्च तक होता है। इसकी कटाई जुलाई महीने में की जाती है। इसके अलावा जे०आर०सी०-212 किस्म मध्य एवं उच्च भूमि में देर से बोई जाने वाली जगहों के लिए उपयुक्त होती है। इसकी बुआई मार्च से अप्रैल में की जाती है। जबकि जुलाई के अन्त तक यह प्रजाति कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जूट की कैपसुलेरिस किस्म के अंतर्गत यू०पी०सी०-94 या रेशमा भी एक उन्नत प्रजाति है। यह निचली भूमि के लिए उपयुक्त एक प्रमुख किस्म है, जिसकी बुआई फरवरी के तीसरे सप्ताह से मध्य मार्च तक की जा सकती है। कैपसुलेरिस किस्म के अंतर्गत जूट की एक अन्य प्रजाति है – जे०आर०सी०-698, इसकी बुआई मार्च के अन्त में की जाती है। यह किस्म निचली भूमि के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

जूट की दूसरी किस्म है – ओलीटोरियस। इसे देव या टोसा जूट भी कहा जाता है। इसका रेशा केपसुलेरिस से अच्छा होता है। उच्च भूमि के लिए उपयुक्त इस किस्म की बुआई अप्रैल के अन्त से पूरे मई तक की जा सकती है। इस किस्म के अंतर्गत विभिन्न प्रजातियाँ शामिल हैं। जैसे जे०आर०ओ०- 632 – यह देर से बोई जाने वाली व ऊँची भूमि के लिए उपयुक्त प्रजाति है। इसकी बुआई अप्रैल से मई के अन्तिम सप्ताह तक की जाती है। इसके अलावा जे०आर०ओ०-878 एक ऐसी प्रजाति है जो सभी प्रकार की मिट्टियों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसकी बुआई मध्य मार्च से लेकर पूरे मई तक की जा सकती है। जहाँ तक ओलीटोरियस किस्म के अंतर्गत आने वाली कुछ और प्रमुख प्रजातियों का सवाल है तो जे०आर०ओ०-524 (नवीन) भी एक बढ़िया उपज देने वाली प्रजाति है। इसकी बुआई मार्च के तीसरे सप्ताह से अप्रैल तक की जा सकती है। यह प्रजाति 120 से 140 दिन में कटाई योग्य हो जाती है। जबकि, जूट की ओलीटोरियस किस्म के अंतर्गत जे०आर०ओ०-66 प्रजाति मात्र 100 दिनों में ही अच्छी उपज दे देती है। इसकी बुआई मई से जून तक की जा सकती है। इस प्रजाति से भी आपको काफी अच्छी पैदावार प्राप्त हो सकती है।

Related posts

Leave a Comment