नई दिल्ली: बीते वर्ष मॉनसून सीजन में रिकॉर्ड स्तर पर हुई बारिश ने भारतीय कृषि को नई ऊर्जा दी। न सिर्फ खरीफ फसलों में, बल्कि इसके सकारात्मक असर ने रबी फसलों की उपज को भी नई ऊंचाई दी। खरीफ के दौरान धान और सोयाबीन की शानदार पैदावार देखने को मिली, वहीं रबी में गेहूं की बंपर फसल ने किसानों के चेहरों पर मुस्कान ला दी। इस समय देश के अलग-अलग हिस्सों में जायद सीजन की फसलें खेतों में लहराती नजर आ रही हैं और उनकी कटाई का समय करीब आ गया है।
इस साल भी भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने अच्छी बारिश का अनुमान जताया है। खास बात यह है कि मॉनसून का आगमन भी सामान्य से पहले होने की संभावना है, जिससे देशभर के किसान खरीफ फसलों की बुवाई की तैयारियों में अभी से जुट गए हैं। ऐसे में खरीफ की प्रमुख तिलहन फसल सोयाबीन की खेती का सुनहरा अवसर सामने है, जो न केवल मुनाफे की दृष्टि से अहम है, बल्कि तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक बड़ा कदम हो सकता है।
खरीफ की स्टार फसल: सोयाबीन
भारत के मध्य, पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में सोयाबीन की खेती विशेष रूप से की जाती है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान देश में इस फसल के सबसे बड़े उत्पादक राज्य माने जाते हैं। आमतौर पर इसकी बुआई जून की शुरुआत से लेकर जुलाई के अंत तक होती है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि 15 जून से 15 जुलाई के बीच की अवधि सोयाबीन की बुआई के लिए सबसे उपयुक्त रहती है। यही वह समय होता है जब मॉनसून की अच्छी बारिश शुरू हो जाती है, जो बीज अंकुरण और प्रारंभिक विकास के लिए आदर्श स्थिति प्रदान करती है। अब ऐसी किस्में भी उपलब्ध हैं, जो अपेक्षाकृत कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी बेहतर उत्पादन देती हैं, जिससे यह फसल अब अधिक व्यापक क्षेत्रों में फैल रही है।
खेत की तैयारी और मिट्टी का महत्व
सोयाबीन की खेती के लिए जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। खेत की तैयारी के दौरान जैविक पदार्थों का समुचित मिश्रण उत्पादन को बेहतर बनाता है। मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से दो बार जुताई करने के बाद देसी हल से फसल की बुवाई के लिए खेत को समतल करना जरूरी होता है। बुवाई से पहले खेत में पतंजलि संजीवक खाद का एक हजार लीटर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करने से फसल को बेहतर पोषण मिलता है।
सड़ी गोबर की खाद से उत्पादन में बढ़ोतरी
सोयाबीन की पैदावार बढ़ाने में सड़ी हुई गोबर की खाद का विशेष योगदान होता है। बुवाई से 20 से 25 दिन पहले खेत में 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर खाद मिलाना उपयुक्त रहता है। जिन किसानों ने अभी तक मिट्टी परीक्षण नहीं कराया है, वे मानक मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और गंधक का समावेश कर सकते हैं, लेकिन इन पोषक तत्वों का इस्तेमाल कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर ही करना बेहतर होगा।
बीज की मात्रा और बुवाई का तरीका
सोयाबीन की बुवाई के लिए बीज की मात्रा दाने के आकार पर निर्भर करती है। मोटे दानों के लिए प्रति हेक्टेयर 80 से 85 किलोग्राम, मध्यम के लिए 70 से 75 और छोटे दानों के लिए 60 से 65 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बुवाई के दौरान पंक्तियों में 45×5 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए। बीजों को बोने से पहले प्रति किलो बीज पर 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करना आवश्यक होता है, ताकि फंगल संक्रमण से बचा जा सके। बुवाई के बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई अत्यंत आवश्यक है, जिसे बुवाई के 30 और 45 दिनों के भीतर दो बार करना चाहिए।
खेती के इस मौसम को बनाएं अवसर
एक ओर जहां बीते साल की अच्छी वर्षा ने फसल उत्पादन में नई ऊर्जा भरी, वहीं इस वर्ष फिर से बेहतर मॉनसून की उम्मीद ने खरीफ सीजन को लेकर उत्साह बढ़ा दिया है। ऐसे में किसान यदि वैज्ञानिक तरीकों और कृषि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार सोयाबीन की खेती करते हैं, तो यह फसल उनके लिए आर्थिक रूप से काफी लाभदायक साबित हो सकती है। तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता और किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा।