नई दिल्ली: हमारे अधिकांश खाद्य पदार्थों में हल्दी एक प्रमुख अवयव के रूप में मौजूद होती है। यह स्वास्थ्य के लिहाज से भी काफी फायदेमंद होती है। इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। अगर कृषि के लिहाज से देखा जाए तो हल्दी की खेती से किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलता है। क्योंकि इसकी खेती में लागत काफी कम है। वैसे तो हल्दी की कई ऐसी किस्में मौजूद हैं, जिनमें क्षेत्र व मिट्टी की अनुकूलता होने पर अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। लेकिन आजकल हल्दी की एक विशेष किस्म की काफी चर्चा हो रही है, इस किस्म की खेती काफी आसान है। साथ ही इसमें कई अन्य क़िस्मों के मुक़ाबले ज़्यादा उत्पादन क्षमता है। इस किस्म का नाम है – एनडीएच-98,इसे आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित किया है। यह किस्म देश के सभी तरह की जलवायु के लिए उपयुक्त है।
एनडीएच-98 किस्म से प्रति हेक्टेयर 350 क्विंटल से ज्यादा पैदावार मिलती है। वही यह किस्म गुणवत्ता के मामलों में दूसरी किस्म से बेहतर है। इस किस्म में 5 प्रतिशत करक्यूमिन पाया जाता है। यह किस्म लीफ ब्लास्ट और लीफ स्पॉट रोग के प्रतिरोधी है। हल्दी की इस प्रजाति की खेती करने वाले किसानों को प्रति हेक्टेयर अच्छा मुनाफा होता है जिससे उनकी आय भी बढ़ रही है। हल्दी की एनडीएच-98 किस्म कई औषधिय गुणों से भरपूर है। इस किस्म का उपयोग सुगंधित और तेलीय रूप से भी किया जा रहा है। इस किस्म में क्यूमिन के साथ-साथ ओलियोरेजिन भी भरपूर मात्रा में है, जिसकी वजह से इसके औषधिय महत्व बढ़ जाते हैं। उत्तर प्रदेश में काफी किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर हल्दी की खेती अपना रहे हैं। इससे उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हो रही है। एक एकड़ हल्दी की खेती में 20 से 25 हज़ार रुपए की लागत आती है। वहीं इस खेती में फायदा ज्यादा होने के चलते किसान एनडीएच-98 किस्म की बुआई में अधिक रुचि दिखा रहे हैं।
हल्दी की बुआई अप्रैल के दूसरे सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक होती है। इस फसल की खेती के लिए बलूई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। यदि जमीन का पीएच 8 से 9 भी है तब भी उसमें हल्दी की खेती हो जाती है। हल्दी की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है। बुआई के दौरान एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच की दूरी 20 से 35 सेंटीमीटर की तक होनी चाहिए। बुआई के समय खेत में प्रति हेक्टेयर 120 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस, 80 किलोग्राम पोटाश और इतनी ही मात्रा सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए।
गौरतलब है कि आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय मसाला परियोजना के अंतर्गत हल्दी की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। हल्दी की एनडीएच-98 किस्म 240 दिन में तैयार हो जाती है। इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। इस किस्म की खेती के लिए जमीन को अच्छी तरीके से तैयार करने के बाद 5 से 7 मीटर लंबी और दो से तीन मीटर चौड़ी क्यारियां बना लेनी चाहिए। इसके बाद तीन 30 से 45 सेंटीमीटर की कतार पर 20 से 25 सेमी पौधे से पौधे की दूरी रखते हुए बुआई करनी चाहिए। यह वैरायटी दूसरी किस्म के मुकाबले ज्यादा बेहतर है।