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इस बार मानसून से उम्मीदें ऊंची, जल संरक्षण पर यूपी का विशेष फोकस, क्यों बारिश का हर बूंद बचाना है जरूरी

नई दिल्ली: भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने इस वर्ष सामान्य से बेहतर मानसून की संभावना जताई है। केरल और पश्चिम बंगाल में पहले से ही मानसून की सक्रियता ने इस उम्मीद को और मजबूत कर दिया है कि इस बार बारिश समय से पहले या तय समय पर आकर पूरे देश को भिगोएगी। जुलाई से सितंबर के बीच होने वाली कुल बारिश सालाना औसत का करीब 70 से 80 प्रतिशत होती है, ऐसे में इसका सीधा असर खेती, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

सबसे बड़ी चुनौती है पानी का प्रबंधन

भारत बारिश के लिहाज से दुनिया के समृद्ध देशों में गिना जाता है। यहां सालाना औसतन 870 मिलीमीटर वर्षा होती है। खासकर उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में यह आंकड़ा और भी अधिक है। बावजूद इसके देश में जल संकट गहराता जा रहा है, और इसका कारण पानी की कमी नहीं बल्कि उसका कुप्रबंधन है।

जल संकट: संसाधन की नहीं, सोच की कमी

यह बात केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में एक पर्यावरण कार्यक्रम में कही थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत में जल संकट का मुख्य कारण जल संसाधनों की अनुपलब्धता नहीं, बल्कि मौजूदा संसाधनों का सही उपयोग न कर पाना है। इसी सोच के तहत केंद्र सरकार ने 2019 में ‘कैच द रेन’ अभियान और अटल भूजल योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किया है।

उत्तर प्रदेश जल संरक्षण में बना देश का अग्रणी राज्य

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की व्यक्तिगत रुचि और नेतृत्व के कारण उत्तर प्रदेश आज जल संरक्षण के क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो चुका है। खेत तालाब योजना, अमृत सरोवर योजना, नदियों का पुनर्जीवन, और शहरी आवासीय इकाइयों में जल संचयन को अनिवार्य करना जैसी पहलों ने राज्य को जल पुरस्कार में देश में प्रथम स्थान दिलाया है। खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश में जल संरक्षण की कई योजनाएं न केवल कागजों पर, बल्कि जमीन पर उतर चुकी हैं। खेत तालाब योजना के तहत राज्य सरकार ने 8500 तालाबों के निर्माण का लक्ष्य रखा है। इससे धान और मक्का जैसी फसलों के क्षेत्रफल और उपज में लगभग 12% की संभावित वृद्धि का अनुमान है।

बुंदेलखंड: जल संकट के खिलाफ जंग का केंद्र

बुंदेलखंड क्षेत्र जल संकट की भयावहता का साक्षात उदाहरण है। यहां बीते 77 वर्षों में औसतन 320 मिलीमीटर वर्षा की गिरावट आई है, जिससे यह क्षेत्र जल संरक्षण प्रयासों का केंद्र बन चुका है। योगी सरकार की कई योजनाओं की शुरुआत यहीं से हुई, जिनमें खेत तालाब योजना और केन-बेतवा लिंक परियोजना प्रमुख हैं। सरकार यहां ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसे कुशल सिंचाई तरीकों को बढ़ावा दे रही है।

योगी आदित्यनाथ की पहल: जल संरक्षण की सोच जमीन से शुरू हुई

जल संरक्षण को लेकर योगी आदित्यनाथ की सोच कोई नई नहीं है। मुख्यमंत्री बनने से पहले, गोरखनाथ मंदिर के महंत रहते हुए उन्होंने मंदिर परिसर में वर्षा जल संचयन के लिए तकनीकी संरचनाएं बनवाई थीं। इनमें गहरे गड्ढों के माध्यम से बोरिंग, फ़िल्ट्रेशन चैंबर और पाइपलाइन के जरिये भूजल पुनर्भरण की व्यवस्था की गई थी।

जल संरक्षण क्यों है जरूरी?

ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम में अस्थिरता बढ़ी है। कम दिनों में अत्यधिक वर्षा और फिर लंबे सूखे की स्थिति ने बाढ़ और सूखा दोनों को आम बना दिया है। इससे खेती पर सीधा असर पड़ता है और सरकार को आपदा प्रबंधन पर भारी खर्च करना पड़ता है। प्रो. दिनेश कुमार सिंह के मुताबिक, जल संकट के चलते भारत उन देशों में सबसे ऊपर है जहां फसल उत्पादन में 28.8% तक की गिरावट आ सकती है।

इस बार मानसून की अच्छी भविष्यवाणी के बावजूद असली चुनौती है हर बूंद को सहेजना। उत्तर प्रदेश इस दिशा में नजीर पेश कर रहा है, लेकिन यह अकेले किसी राज्य या सरकार की जिम्मेदारी नहीं हो सकती। जल संरक्षण को लेकर यदि जन-सामान्य की भी सहभागिता सुनिश्चित की जाए, तो आने वाले समय में भारत जल संकट की बजाय जल समृद्धि की ओर कदम बढ़ा सकता है। मानसून का यह अवसर सिर्फ बारिश का नहीं, बल्कि सोच के बदलाव का भी है।

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