नई दिल्ली: मसूर एक महत्तवपूर्ण प्रोटीनयुक्त दलहनी फसल है। भारत के लगभग सभी घरों में दाल के रूप में इसका उपयोग होता है। भारत दुनिया में सब से अधिक मसूर पैदा करने वाला देश है। इस फसल को मिट्टी की कुछ किस्मों को छोड़कर सभी किस्मों में उगाया जा सकता है। नमक वाली, क्षारीय और जल जमाव वाली मिट्टी में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। अच्छी पैदावार के लिए खेत की मिट्टी भुरभुरी और नदीन रहित होनी चाहिए ताकि बीज एक समाज गहराई में बोए जा सकें।
एलएल 699, एलएल 931, बॉम्बे 18, डीपीएल 15, डीपीएल 62, एल 4632, के 75 और पूसा 4076 मसूर की कुछ उन्नत किस्में हैं। इनसे आपको बढ़िया उपज प्राप्त हो सकती है। मसूर की खेती के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना आवश्यक है। हल्की मिट्टी में सीड बैड तैयार करने के लिए कम जुताई की आवश्यकता होती है जबकि भारी मिट्टी में एक गहरी जुताई के बाद हैरो द्वारा 3 से 4 बार क्रॉस जुताई करनी चाहिए। ज़मीन को समतल करने के लिए 2-3 जुताई पर्याप्त होती है। पानी के उचित वितरण के लिए यह ज़रूरी है कि खेत समतल हो। इसके अलावा बीजों की बिजाई के समय खेत में उचित नमी मौजूद रखने से बीजों का उचित विकास होता है।
मसूर की बिजाई मध्य अक्टूबर से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक ज़रूर पूरी कर लेनी चाहिए। इससे फसल का उचित समय पर उचित विकास होता है। बिजाई के दौरान दो पंक्तियों के बीच 22 से.मी. की दूरी बरकरार रखें। अगर किसी वजह से मसूर की बिजाई करने में देरी हो गई हो तो यह फासला थोड़ा कम करके 20 से.मी. कर दें। मसूर की बिजाई के लिए आप पोरा विधि, खाद या बीज वाली मशीन का प्रयोग कर सकते हैं। इसके इलावा इसकी बिजाई हाथों से छींटा देकर भी की जा सकती है। मसूर की बिजाई के लिए 12-15 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बीज पर्याप्त होते हैं। बिजाई से पहले बीजों को कप्तान या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलोग्राम की दर से ज़रूर उपचारित करें। आप बीजों को राइज़ोबियम से भी उपचारित कर सकते हैं।
किसान मित्रों, मसूर की फसल को जलवायु के आधार पर सिंचित क्षेत्रों में 2-3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बिजाई के 4 सप्ताह बाद इस फसल की एक सिंचाई जरूर करनी चाहिए जबकि दूसरी फूल निकलने की अवस्था में करनी चाहिए। फलियां भरने और फूल निकलने की अवस्था सिंचाई के लिए गंभीर अवस्थाएं होती हैं। इसलिए इसका ध्यान रखें।
जब मसूर के पौधों के पत्ते अच्छी तरह से सूख जाएं और फलियां पक जाएं तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस अवस्था में फसल की तुरंत कटाई शुरू कर देनी चाहिये। क्योंकि इसमें देरी करने से फलियां झड़नी शुरू हो जाती है। फसल की कटाई के लिए दराँती का उपयोग करें। कटाई के बाद दानों को फसल से अलग कर और साफ कर उन्हें धूप में सुखाएँ। फिर उनका उचित तरीके से भंडारण करें या बिक्री के लिए बाज़ार की तलाश करें।