नई दिल्ली: धान उत्पादन के मामले में भारत का पूरे विश्व में एक प्रमुख स्थान है। हमारे यहाँ धान की खेती सिंचित व असिंचित दोनों ही स्थितियों में की जाती है। सिंचित क्षेत्रों में धान की वो उन्नतशील प्रजातियाँ जो अधिक उपज देती हैं, किसानों के बीच उनका प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन धान की खेती को लेकर काफी किसानों में एक सामान्य सी समस्या देखी जाती है, वो है कीट-ब्याधियों की। यदि समय रहते ही धान की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों पर नियंत्रण कर लिया जाए तो अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। सिंचित धान की फसल को विभिन्न हानिकारक कीट नुकसान पहुंचाते हैं। इनपर नियंत्रण के लिए आप निम्न उपाय कर सकते हैं:
तना छेदक: ये इल्लियां तने को अन्दर से खाकर पत्तियों की शिराओं को नुकसान पहुंचाती हैं। इससे बचाव के लिए कीट अवरोधी प्रजातियों जैसे रत्ना,जयश्री, दीप्ती, साकेत और विकास इत्यादि की बुआई करें। नत्रजन युक्त उर्वरकों का उचित व संतुलित मात्रा में उपयोग करने से भी तना छेदक नियंत्रित होता है। गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें। समय से पूर्व या समय पर रोपाई/बुआई करें। स्वस्थ नर्सरी का विकास करें एवं रोपाई के पहले पौध की ऊपरी पत्तियों की छंटाई ज़रूर करें।
भूरा भूनगा फुदका: यह कीट पौधे के विभिन्न अंगों से चूसता है, जिससे फसल फूल आने के पहले ही सूखने लगती है। फसल का सूखना घेरे में शुरू होता है और घेरा धीरे-धीरे आकार मे बड़ा होता जाता है। इस कारण फसल झुलसी हुई सी दिखाई देती है। इससे बचाव के लिए प्रतिरोधी किस्मों जैसे मानसरोवर, ज्योति व अरूणा आदि का उपयोग करें। धान के खेत के आस-पास की घास व खरपतवार का उन्मूलन करें। जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। नत्रजन युक्त उर्वरकों का उचित व संतुलित मात्रा में उपयोग करें। इस कीट का प्रकोप बढ़ने पर मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव 600-700 मि.ली. प्रति हेक्टर की दर से(600 से 700 लीटर पानी में) करें।
गंधी मक्खी: इस कीट के प्रभाव से शिशु एवं वयस्क कीट दानों में दूधिया अवस्था के दौरान दूध चूसते हैं। इस वजह से धान की बालियों में दाने नहीं बन पाते हैं और वे पोचे रह जाते हैं। यही नहीं, इस कीट की वजह से दानों पर किये गये छेदों के चारों ओर काले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। गंधी मक्खी पर नियंत्रण के लिए धान के खेत के आस-पास की घास व खरपतवार का उन्मूलन करें। प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें। 2 प्रतिशत पैराथियान डस्ट 25 कि.ग्रा./हे के दर से सुबह के समय भुरकाव करें। साथ ही आवश्यकता पड़ने पर 0.036 मोनोक्रोटोफॉस का भी छिड़काव 600-700 मि.ली. प्रति हेक्टर की दर से करें।
सफेद पीठ वाला भुनगा-फुदका: इस कीट के शिशु एवं वयस्क पत्तियों तथा तने का रस चूसते हैं, जिससे उस स्थान पर भूरे दाग पड़ जाते हैं और पौधे की वृध्दि रूक जाती है। कीट बधिता के कारण पत्तियाँ रंगहीन होकर सिरे से नीचे की ओर सूखकर गोल हो जाती हैं। कीट प्रभावित पत्तियां प्रारम्भ में पीली और बाद में ईंट के रंग के समान हो जाती हैं। इस कीट से बचाव के लिए गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें तथा पौधों के ठुंठे नष्ट कर दें। इस कीट पर नियंत्रण के लिए प्रतिरोधी किस्मों जैसे सुरक्षा या शक्तिमान आदि की बुआई करें। धान के खेत के आस-पास की घास व खरपतवार का उन्मूलन करें। जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। यदि की कीट का प्रभाव बढ़ जाए तो मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव 600-700 मि.ली. प्रति हेक्टर की दर से(600 से 700 लीटर पानी में) करें।