लखनऊ: प्रदेश में लागू बिजली दरों में बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं। दरअसल, बिजली कंपनियों ने नियामक आयोग में जो प्रस्ताव दाखिल किया है, उसमें बिजली दरों में की जाने वाली वृद्धि का जिक्र है। बताया जा रहा है कि बिजली कंपनियों ने वर्तमान में लागू स्लैब को 80 से घटाकर 53 कर दिया है। यदि उपभोक्ताओं को इस नई व्यवस्था के तहत बिजली बिल देना पड़ा तो निश्चित रूप से उनकी जेब पर इसका असर पड़ेगा। खास तौर पर बिजली की कम खपत करने वाले छोटे उपभोक्ताओं पर। बिजली दरों में वृद्धि के संकेत मिलते ही उत्तर प्रदेश विद्युत उपभोक्ता परिषद ने बिजली कंपनियों द्वारा प्रस्तुत इस प्रस्ताव का विरोध किया है।
उत्तर प्रदेश विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बिजली दरों में वृद्धि के मुद्दे पर नियामक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह से बात की। उन्होने बिजली कंपनियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि, “बिजली कंपनियां उपभोक्ताओं के साथ धोखा कर रही हैं। बिजली दर पर सुनवाई के बीच स्लैब बदलने की मांग के लिए जो प्रस्ताव दिया गया है, वह उचित नहीं है। स्लैब कम किए जाने से अधिक भार छोटे उपभोक्ताओं पर आ जाएगा। लिहाजा स्लैब बदलने के प्रस्ताव पर तभी विचार किया जाए जब बिजली दरों में 16 फीसदी की कमी हो।”
विद्युत उपभोक्ता परिषद ने नियामक आयोग को भेजे गए प्रस्ताव के जरिये अपनी मांग रखी है। परिषद ने वर्ष 2019 -20 के टैरिफ आर्डर में बिजली उपभोक्ताओं के पक्ष में 2017-18 तक निकलने वाली उस राशि की मांग की है जो बिजली कंपनियों पर निकल रही है। परिषद ने कहा है कि यह राशि उपभोक्ताओं को दी जानी है। विद्युत उपभोक्ता परिषद के अनुसार अब 13 प्रतिशत कैरिंग कॉस्ट जुड़ने के बाद कुल राशि अब करीब 14782 करोड़ रुपये हो गई है। यदि यह राशि उपभोक्ताओं को दे दी जाए तो बिजली दरों में करीब 25 प्रतिशत तक कमी आ जाएगी। वहीं अगर बिजली कंपनियों के 4500 करोड़ रुपये के गैप को घटा दिया जाए तो बिजली दरों में 16 प्रतिशत की कमी हो सकती है।
विद्युत उपभोक्ता परिषद ने नियामक आयोग को भेजे गए प्रस्ताव के जरिये अपनी मांग रखी है। परिषद ने वर्ष 2019 -20 के टैरिफ आर्डर में बिजली उपभोक्ताओं के पक्ष में 2017-18 तक निकलने वाली उस राशि की मांग की है जो बिजली कंपनियों पर निकल रही है। परिषद ने कहा है कि यह राशि उपभोक्ताओं को दी जानी है। विद्युत उपभोक्ता परिषद के अनुसार अब 13 प्रतिशत कैरिंग कॉस्ट जुड़ने के बाद कुल राशि अब करीब 14782 करोड़ रुपये हो गई है। यदि यह राशि उपभोक्ताओं को दे दी जाए तो बिजली दरों में करीब 25 प्रतिशत तक कमी आ जाएगी। वहीं अगर बिजली कंपनियों के 4500 करोड़ रुपये के गैप को घटा दिया जाए तो बिजली दरों में 16 प्रतिशत की कमी हो सकती है।