लखनऊ: देश और दुनिया के कृषि क्षेत्र के सामने एक नया और गंभीर संकट तेजी से उभर रहा है – वो है मिट्टी में भारी धातुओं की लगातार बढ़ती मात्रा। एक वैश्विक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 15 फीसदी खेती योग्य जमीन अब भारी धातुओं से प्रदूषित हो चुकी है, जिससे न केवल फसल उत्पादन प्रभावित हो रहा है, बल्कि करीब 1.4 अरब लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है।
खतरनाक स्तर तक पहुंची भारी धातुएं
यूनिवर्सिटी ऑफ यार्क के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार, इन क्षेत्रों की मिट्टी में आर्सेनिक, कैडमियम, कोबाल्ट, क्रोमियम, कॉपर, निकल और लेड जैसी धातुएं खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी हैं। यह धातुएं भोजन, पानी और हवा के माध्यम से मानव और पशु जीवन में प्रवेश कर रही हैं, जिससे दीर्घकालीन बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ा है।
खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का योगदान
इस बढ़ते खतरे के पीछे सबसे बड़ा कारण है – रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक और अनियंत्रित प्रयोग। फास्फेटिक उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल और औद्योगिक कचरे का असंगठित निस्तारण इस संकट को और भी गंभीर बना रहे हैं।
समाधान: प्राकृतिक और जैविक खेती
इस संकट से उबरने के लिए प्राकृतिक या जैविक खेती ही एकमात्र प्रभावी विकल्प बनकर उभरी है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। प्राकृतिक खेती न केवल विषमुक्त होती है, बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल, जलवायु-लचीली और कम लागत वाली भी होती है।
कृषि सखियों की नियुक्ति और जागरूकता अभियान
राज्य सरकार ने गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों और बुंदेलखंड सहित अन्य क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रति माह ₹5000 मानदेय पर ‘कृषि सखियों’ की नियुक्ति की योजना बनाई है। ये सखियां कृषि विज्ञान केंद्रों से प्रशिक्षण लेकर किसानों को मार्गदर्शन देंगी। साथ ही, प्रत्येक जिले में दो ‘बायो इनपुट रिसर्च सेंटर’ (BRC) की स्थापना की जाएगी।
दो वर्षों में ₹250 करोड़ का निवेश
इस योजना के तहत 282 ब्लॉक, 2,144 ग्राम पंचायतों और 2.5 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जाएगा। खेती क्लस्टर आधारित होगी, जहां हर क्लस्टर 50 हेक्टेयर का होगा। सरकार इस परियोजना पर अगले दो वर्षों में करीब ₹250 करोड़ खर्च करेगी।
बुंदेलखंड में गो आधारित प्राकृतिक खेती मिशन
बुंदेलखंड के सात जिलों (झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, महोबा, बांदा और चित्रकूट) में गोबर और गोमूत्र आधारित खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। किसानों को ‘जीवामृत’, ‘बीजामृत’ और ‘घनजीवामृत’ तैयार करने और उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके साथ ही अब तक 470 क्लस्टर बनाए गए हैं। 21,934 किसानों को इससे जोड़ा जा चुका है। 2535 फार्मर्स फील्ड स्कूल सत्र आयोजित किए गए हैं। सरकार ने पहले और दूसरे चरण के लिए ₹13.16 करोड़ की राशि जारी की है।
निराश्रित गोवंश: अब बनेंगे खेती का सहारा
प्रदेश के 7,700 गोआश्रयों में 12.5 लाख निराश्रित गोवंश रखे गए हैं। इन आश्रयों को प्राकृतिक खेती के मॉडल केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। वर्मी कंपोस्ट इकाइयों की स्थापना से गोबर का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जा रहा है। प्रसंस्करण तकनीक, फोर्टीफाइड चारा उत्पादन, और भंडारण तकनीकों में राष्ट्रीय चारा अनुसंधान केंद्र, झांसी का सहयोग लिया जा रहा है।
पशुपालकों के लिए योजनाएं
नंदनी कृषक समृद्धि योजना – देशी गायों की 25 नस्लों के संरक्षण व संवर्धन हेतु पशुपालकों को बैंकों के ऋण पर 50% सब्सिडी।
अमृत धारा योजना – दो से दस गायों के पालन हेतु ₹10 लाख तक का अनुदानित ऋण, ₹3 लाख तक गारंटर की आवश्यकता नहीं।
मुख्यमंत्री सहभागिता योजना – निराश्रित गोवंश पालकों को ₹1,500 प्रति माह सहायता।
प्राकृतिक खेती की वैश्विक मांग
कोविड महामारी के बाद पूरी दुनिया स्वस्थ और विषमुक्त खाद्य उत्पादों की ओर बढ़ी है। ऑर्गेनिक और प्राकृतिक खेती से उत्पन्न उत्पादों की निर्यात क्षमता में इज़ाफा हुआ है। ऐसे में किसानों के लिए यह कम लागत, ज्यादा मुनाफे वाला विकल्प बनता जा रहा है।
मिट्टी में बढ़ते भारी धातु प्रदूषण के इस संकट से निपटने के लिए प्राकृतिक खेती न केवल विकल्प बल्कि आवश्यकता बन चुकी है। योगी सरकार की योजनाएं न केवल पर्यावरण की रक्षा करेंगी, बल्कि किसानों की आय बढ़ाने और गोवंश संरक्षण जैसे बहुआयामी लक्ष्यों को भी साधेंगी।