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इस वजह से बनते हैं आम के पेड़ पर जाले, पैदावार में गिरवाट से बचने के लिए इन्हें तुरंत करें नियंत्रित

पटना: इस समय आम के पेड़ फल से लदे हुए हैं। ठीक इसी बीच काफी पेड़ों पर बहुतायत रूप में जाले भी दिख रहे हैं। यह कोई सामान्य सी समस्या नहीं है, बल्कि यदि समय रहते इसपर ध्यान नहीं दिया गया तो पैदावार के संदर्भ में इसके प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। यदि किसी किसान के पास आम के छोटे बाग हैं तो यह समस्या कई बार आसानी से नज़र में आ जाती है, लेकिन बड़े बागों में जहाँ पेड़ अधिक व बड़े-बड़े हैं, वहाँ शायद ही इस समस्या पर किसी किसान की नज़र पड़ पाती है और वे इससे निपटने की व्यवस्था करते हैं। ऐसे में इससे किसानों को बड़ा नुकसान होता है। हाल के वर्षों में जालों के कारण बागों में पैदावार सहित पेड़ की सेहत पर भी काफी असर पड़ा है। दरअसल, यह समस्या आम के पत्तों वाले बेवर के कारण होती है। अगर किसान सही समय पर इसका निपटान नहीं करते हैं तो आम की गुणवत्ता और पैदावार पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

आम के पेड़ों में जाले लगने की समस्या ज़्यादातर नमी वाले इलाकों में नुकसानदायक साबित होती है। जिस कीट की वजह से यह समस्या उत्पन्न होती है, पहले उसे आम के लिए कम खतरनाक माना जाता था, लेकिन विगत दो वर्षों से यह कीट बिहार में आम की पैदावार को नुकसान पहुंचाने वाला एक प्रमुख कीट बन गया है। यह कीट हर वर्ष जुलाई महीने से ही अति सक्रिय हो रहा है और दिसंबर तक नुकसान पहुंचा रहा है।

आम के बाग में इन जालों को किसान हल्के में लेने की गलती न करें। आजकल यह सबसे खतरनाक बीमारी के रूप में आम की पैदावार को नुकसान पहुंचा रहा है। इस समस्या का कारण लीफ वेबर नाम का कीट है, जो आम की पत्तियों पर अंडे देता है। यह आम की पत्तियों को खाता है, जबकि दूसरे इंस्टा लार्वा पत्तियों को बंद करना शुरू कर देते हैं और पूरे पत्ते को खाने लगते हैं। मई के महीने में भी इस कीट के प्रभाव को देखा जा सकता है।

उन बागों में यह कीट ज्यादा खतरनाक रूप ले लेता है जिनका प्रबंधन ठीक से नहीं होता है। अतः अगर आपने आम का बाग लगाया है तो बेहतर होगा कि हर साल जुलाई से लेकर दिसंबर तक पेड़ों पर विशेष निगरानी रखें। इसके अलावा समय-समय पर पेड़ों पर लगे जालों को काटते व हटाते रहें। इसके बाद लैम्बाडायशोथ्रिन 5 ईसी की 2 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करते रहें। पहले स्प्रे के 15-20 दिनों के बाद दूसरा छिड़काव या तो लैम्ब्डासीलोथ्रिन 5 ईसी (2 मिली / लीटर पानी) या क्विनालफॉस 25 ईसी (1.5 मिली लीटर पानी) के साथ करना चाहिए। साथ ही इंडोक्साकार्ब (1.5 मिली प्रति लीटर पानी) या एम्मामेक्टिन (0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी) जैसे कीटनाशक का भी छिड़काव करके भी इस कीट को प्रबंधित किया जा सकता है। अगर इन तमाम उपायों को अपनाने के बाद भी जालों में संतोषजनक रूप से कमी नहीं आ रही है तो जितनी जल्दी हो सके आपको किसी कीट वैज्ञानिक से संपर्क करना चाहिए।

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