नई दिल्ली: किसान मित्रों, काली तोरी का नाम कृषि जगत में संभवतः बहुत अधिक सुना हुआ नाम नहीं है। काफी किसान इसकी खेती से आज भी लगभग अपरिचित से हैं। काली तोरी को लुफा काली तोरी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी बेलों की लंबाई 30 फुट से भी ज्यादा और फलों की लंबाई 1 से 2 फुट तक होता है। भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान और झारखंड आदि राज्यों में की जाती है।
काली तोरी को मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है। लेकिन रेतली दोमट मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। इसकी रोपाई के लिए थोड़ी क्षारीय मिट्टी भी अच्छी रहती है। काली तोरी की खेती के लिए मिट्टी की pH 6.5-7.0 होना चाहिए। अगर आप काली तोरी की खेती शुरू करना चाहते हैं तो पीएसजी – 9, पूसा चिकनी, आज़ाद तोरिया – 2, पूसा सुप्रिया व पूसा स्नेहा आदि इसकी कुछ उन्नत किस्में हैं। आपको इनके जरिये बढ़िया पैदावार प्राप्त हो सकती है।
किसान मित्रों, काली तोरी की खेती के लिए मिट्टी को भुरभुरा करने और खेत को नदीन मुक्त करने के लिए अच्छे से जुताई करना आवश्यक है। जुताई करते समय अच्छी उपज के लिए खेत में रूड़ी की खाद डालें। इसके बीजों को वर्ष में दो बार बोया जाता है। काली तोरी की खेती के लिए पहली बार बिजाई का सबसे अच्छा समय मध्य फरवरी से मार्च तक का महीना होता है। जबकि दूसरी बार बिजाई के लिए मध्य मई से जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। इसके बीजों को दो बीज प्रति क्यारी के हिसाब से बोया जाता है। इसकी एक क्यारी 3 मीटर चौड़ी होती है। किसान मित्रों, काली तोरी के बीजों की बुआई करते समय 75-90 से.मी. के फासले को बरकरार रखें और बीजों को 2.5-3 से.मी. की गहराई में बोएँ। जहाँ तक बीज की मात्रा की बात है तो प्रति एकड़ में 2 किलोग्राम बीज का प्रयोग करें।
इस फसल की पहली सिंचाई बीज बोने के तुरंत बाद की जाती है जबकि गर्मियों और सूखे जैसी स्थिति में 7-10 दिनों के अंतराल पर खेत की सिंचाई करें। काली तोरी की फसल को बारिश के मौसम में सीमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। काली तोरी बिजाई के 70-80 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। बेहतर होगा कि आप 3-4 दिनों के अंतराल पर नर्म और मध्यम आकार के फलों की तुड़ाई करें। जहाँ तक बात है उपज की तो काली तोरी 66 से 83 क्विंटल प्रति एकड़ तक औसतन पैदावार देती है।