नई दिल्ली: हल्दी का इस्तेमाल हमारे देश के प्रायः सभी घरों में लगभग रोज ही किया जाता है। भारतीय भोजन का यह एक बहुत ही आवश्यक अवयव है। इसलिए बाज़ार में हल्दी की मांग तकरीबन पूरे साल बनी रहती है। हल्दी की बिक्री सुखी अवस्था के अलावा फसल कटने की तुरंत बाद की अवस्था में भी की जाती है। इसलिए जो किसान हल्दी की खेती करते हैं, उन्हें इसके जरिये काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है। इसकी खेती में जितना अच्छा मुनाफा है, उतना ही इस फसल को रोगों व कीटों से प्रभावित होने का भी खतरा होता है।
हल्दी की फसल पर झुलसा रोग का प्रकोप अक्सर देखने को मिलता है। इसे रोकने के लिए मैनकोज़ेब 30 ग्राम या कार्बेनडैज़िम 30 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में डालकर 15-20 दिनों के अंतराल पर फसल पर छिड़काव करें। आप चाहें तो प्रोपीकोनाज़ोल 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डाल कर भी स्प्रे कर सकते हैं।
हल्दी की फसल को नुकसान पहुंचाने वाला अगला रोग है जड़ गलन रोग। इसे रोकने के लिए बिजाई के 30, 60 और 90 दिनों के बाद मैनकोज़ेब 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़कें।
कुछ रोगों से प्रभावित होनेपर हल्दी के पौधे अक्सर मुरझाने लगते हैं। इसे रोकने के लिए फसल पर कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।
हल्दी की फसल पर राईज़ोम मक्खी का काफी प्रकोप देखने को मिलता है। यदि फसल पर इस कीट का हमला दिखे तो एसीफेट 75 एस पी 600 ग्राम. को 100 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर स्प्रे करें। यदि इस मक्खी के प्रकोप में कमी न दिखे तो इस प्रक्रिया को 15 दिनों के बाद दोहराएँ।
रस चूसने वाले कीड़े हल्दी की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इन कीड़ों को रोकने के लिए नीम से बने कीटनाशक अझाडीराक्टीन 0.3 ई सी की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर स्प्रे करें।