नई दिल्ली: आज के समय में मुर्गी पालन ग्रामीण क्षेत्रों में आय का एक बेहतर स्रोत साबित हो रहा है। लोगों को इस व्यवसाय से एक अच्छी व नियमित आय प्राप्त हो रही है। लेकिन इसके बावजूद अभी भी काफी लोग इस व्यवसाय की सफलता के प्रति सशंकित हैं। वजह है मुर्गियों को होने वाली बीमारियों के विषय में उचित जानकारी का अभाव। एक तरह से मुर्गीपालकों की यह शंका काफी हद तक सही भी है। क्योंकि मुर्गियों को होने वाले कुछ रोग तो इतने खतरनाक होते हैं कि ज़रा सी भी लापरवाही भारी नुकसान पहुँचा सकती है। ऐसे में बेहतर तो यही होगा कि इस व्यवसाय को शुरू करने से पहले ही मुर्गियों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों और उनसे बचाव के बारे में जानकारी हासिल कर ली जाए।
पुलोरम रोग मुर्गियों में फैलने वाला एक काफी संक्रामक रोग है। इस रोग से ग्रसित होने पर मुर्गी की बीट सफेद हो जाती है और वो बेचैन रहने लगती है। इस रोग से विशेष रूप से तीन सप्ताह उम्र तक के चुजे ज्यादा प्रभावित होते हैं। चूजे सुस्त और गर्दन झुकाये रहते हैं। फिर अचानक फार्म का सारा क्षेत्र इस रोग के चपेट में आ जाता है। मुर्गी फार्म की साफ-सफाई तथा चूजों को संतुलित आहार देने से इस रोग को नियंत्रित करने में काफी सहायता मिलती है। एन्टीबायोटिक दवाओं द्वारा भी रोगग्रस्त मुर्गी को काफी लाभ मिलता है। इस रोग से बचाव के लिए कुछ अतिरिक्त सावधानियाँ अपनाएँ। जैसे – वंशानुगत रोग से ग्रसित चूजे की खरीदने से बचें। फार्म में स्वच्छ हवा व धूप की व्यवस्था रखें। मुर्गियों का खेप बदलने पर फार्म की विधिवत रूप से सफाई करें। मुर्गियों का नियमित अंतराल पर टीकाकरण ज़रूर करवाएँ।
फाउल कॉलरा मुर्गियों में फैलने वाली एक अन्य संक्रामक बीमारी है। इस रोग से ग्रसित होने पर मुर्गियों की नाक से पतला स्राव होने लगता है। इसके अलावा प्रभावित मुर्गियों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है तथा उनके शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है। साथ ही उनके पैरों में सूजन आ जाती है। मुर्गियों के लिए यह रोग काफी खतरनाक है। क्योंकि इसकी वजह से मुर्गियों की मृत्यु दर 90 से 95 प्रतिशत तक पहुँच जाती है। इस रोग से बचाव के लिए आक्रांत व स्वस्थ पक्षियों को पशु चिकित्सक की सलाह पर ओ फ्लोक्सासीन या एनरोफलोक्सासीन समूह की दवाओं की उचित मात्रा दें। इससे मुर्गियों की मृत्यु दर में कमी आएगी। मुर्गियों को इस रोग से बचाने के लिए एक अंतराल पर टीकाकरण करना भी काफी ज़रूरी है। ऐसा कर मुर्गियों को मरने से काफी हद तक बचाया जा सकता है। वर्षा काल में यह रोग मुर्गियों को अधिक नुकसान पहुंचाता है। इसलिए यह ज़रूरी है की बरसात के मौसम में नमी रहित बीचाली का इस्तेमाल किया जाए और साफ-सफाई रखी जाए।
इन्फेक्सीयस कोराइजा मुर्गियों में फैलने वाला एक भयंकर सक्रामक जीवाणु जनित रोग है। इस रोग के दौरान पक्षियों को साँस लेने में तकलीफ होती है। मुँह तथा नाक से पानी आना, चेहरे पर सूजन और शिथिलता इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग से बचाव के लिए आक्रांत पक्षियों को स्वस्थ पक्षियों से बिलकुल अलग रखें। पक्षियों के नाक व मुँह को 5 प्रतिशत पोटैशियम परमैगनेट के गुनगुने घोल से धोएँ। इसके अलावा डॉक्टर की सलाह पर एन्टीबायोटिक दवा की खूराक दें।
मुर्गियों में फैलने वाला एक अन्य जीवाणु जनित रोग है – कोलाई बैसिलोसिस। इस रोग के कारण मुर्गियों में दम फूलना, बेचैनी और उनके बीट खून आने के लक्षण पाये जाते हैं। इस रोग के दौरान मृत्यु दर काफी अधिक होती है। इससे बचाव के लिए रोग से प्रभावित पक्षियों को एन्टीबायोटिक दवाएँ जैसे – बैसीक्लॉक्स, फ्यूरॉन या मैटोनिडाजोल की निर्धारित मात्रा पीने के पानी अथवा आहार में चिकित्सकीय सलाह से दें।